‘महामति प्राणनाथ एवं महात्मा गाँधी के दर्शन में आध्यात्मिक समभाव’

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गाँधी स्मृति एवं दर्शन समिति और श्री प्राणनाथ मिशन दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आज राजघाट स्थित गाँधी दर्शन में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया. इसका विषय था-‘महामति प्राणनाथ एवं महात्मा गाँधी के दर्शन में आध्यात्मिक समभाव’. कार्यक्रम में उत्तर परिषद शिक्षा परिषद् के अध्यक्ष प्रो गिरीशचन्द्र त्रिपाठी मुख्य अतिथि थे, और पूर्व केन्द्रीय मंत्री और गाँधी स्मृति एवं दर्शन समिति के उपाध्यक्ष श्री विजय गोयल बतौर विशिष्ट अतिथि उपस्थित थे. अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो पी सी टंडन ने की.
उपस्थित जनों को सम्बोधित करते हुए श्री विजय गोयल ने युवाओं को महामति प्राणनाथ और महात्मा गाँधी के जीवन से प्रेरणा लेने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि महात्मा गाँधी, महामती प्राणनाथ, कबीर, नानक आदि सभी संतों ने अपनी शिक्षाओं में परसम्मान, सत्य, समाजसेवी भावना अपनाने पर जोर दिया है. गांधीजी ने तो अपना पूरा जीवन सेवा में बिता दिया. आज हमें और विशेषत : युवाओं को इन महापुरुषों से प्रेरणा लेनी चाहिए.
प्राणनाथ मिशन के निदेशक श्री मोहन प्रियाचार्य ने कहा कि गाँधी भारत में ही नहीं, अपितु पूरे विश्व में सम्माननीय हैं. लोग उन्हें शांतिदूत, सत्य अन्वेषक और अहिंसा के पुजारी के रूप में जानते हैं. उनमें और महामती प्राणनाथ के विचारों में अनेक समानताएं थीं, गांधीजी की तरह महामति जी भी अपने विचारों में कई बार चरखे का उल्लेख करते हैं.
बीएचयू के पूर्व कुलपति और उत्तर परिषद शिक्षा परिषद् के अध्यक्ष प्रो गिरीशचन्द्र त्रिपाठी ने अपने सम्बोधन में भारतीय दर्शन की विशेषताओं का जिक्र करते हुए कहा कि सम्पूर्ण सृष्टि हमारा परिवार है. हमारी आत्मा ही परमात्मा है. यही भारतीय दर्शन है.
गाँधी स्मृति एवं दर्शन समिति के निदेशक श्री दीपंकर श्री ज्ञान ने कहा कि गांधीजी पर प्रनामी सम्प्रदाय का प्रभाव उम्र भर रहा. बचपन में उन्होंने अपनी माता और दाई से प्रनामी सम्प्रदाय की शिक्षाएं ग्रहण की. इन्हीं शिक्षाओं से उनमें सभी का आदर करने और सर्वधर्म सद्भाव की भावना विकसित हुई. इस अवसर पर महामति प्राणनाथ मिशन की शोध पत्रिका ‘जागनी’ का विमोचन किया गया. लघु फिल्म महामति और महात्मा का प्रदर्शन भी लोगों के आकर्षण का केंद्र रहा.
संगोष्ठी में प्रो राकेश उपाध्याय, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ रंजीत साहा, श्री प्रकाश शर्मा, डर प्राणकिशोर ने भी अपने विचार व्यक्त किये. इससे पूर्व श्री लीलारस सागर ने महामति के पदों को सस्वर गायन किया. मंच संचालन श्री विश्वमोहन मिश्रा ने किया.